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शनिवार, 9 मई 2015

खूबसूरत जिंदगी चाहते हैं, तो हौसला भी रखिए

रोजा लग्जेम्बर्ग: 1870 में पोलेंड में जन्मीं रोजा लग्जेम्बर्ग ने विभिन्न राजनीतिक आंदोलनों पर गहरा असर डाला। 1919 में उनकी हत्या कर दी गई।
1: महिलाओं की स्वतंत्रता के बिना कोई सामाजिक लोकतंत्र जिंदा नहीं रह सकता।
2: जो लोग आगे नहीं बढ़ते, वे अपनी जंजीरों के बारे में कभी नहीं जान पाते।

3: जो लोग अलग सोचते हैं, उनके लिए स्वतंत्रता का अर्थ केवल स्वतंत्रता है यानी पूरी आजादी ।
4: बेशक पूंजीवादी वर्ग का प्रभुत्व एक ऐतिहासिक जरूरत है, लेकिन मजदूर वर्ग का इसके खिलाफ उठ खड़ा होना भी उतना ही जरूरी है। इसी तरह पूंजी एक ऐतिहासिक जरूरत है, लेकिन समाजवादी ताकतों का इसे गहरे में दफन करना भी आवश्यक है।
5: स्वतंत्रता हमेशा विरोधी मतों के बीच चयन की आजादी है। 
6: सामाजिक लोकतंत्र जितना ज्यादा विकसित और मजबूत होगा, उतना ही प्रबुध्द मजदूर जनता के आंदोलन अपनी राह पर आगे बढ़ते जाएंगे। साथ ही जनता अपने निर्माण की जिम्मेदारी अपने हाथों में लेती चली जाएगी।
7: शहर और देश की जनता की सचेत कार्रवाई के माध्यम से ही स्वतंत्रता और गैर -बराबरी को इंसानी जीवन का हिस्सा बनाया जा सकता है, बौध्दिक परिपक्वता और अटूट आदर्शवाद के जरिए ही इसे अपने मुकाम तक पहुंचाया जा सकता है।
8: हर देश की जनता को केवल एक चीज सीखना जरूरी है कि वे अपने लड़ाई को कैसे लड़ें। 
9: सामाजिक लोकतंत्र को जनता के संघर्ष के नारों की जरूरत होती है, और वह इसे पाता भी है।
10: जनता ही वह जरूरी तत्व है, जिससे क्रंाति के आखिरी पत्थर पर अंतिम जीत की इबारत लिखी जा सकती है।
11: सामाजिक लोकतंत्र श्रमजीवियों का, जो पूरी जनता का एक छोटा-सा टुकड़ा हैं पहला पहरेदार है। इसका पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ते जाना जरूरी है।
12: अगर सरकार के कुछ लोगों और पार्टी के कुछ लोगों को ही आजादी मिलती है
जो कि संख्या में बेहद कम हैं, तो ऐसी आजादी का कोई अर्थ नहीं है।
13: इतिहास एकमात्र सच्चा शिक्षक है और क्रंाति सबसे अच्छा स्कूल।
14: किसी देश की जनता असल में उसके नेतृत्व की वास्तविकता होती है। दोनों के बीच का संघर्ष अपना रास्ता खुद निकाल लेता है।
15: सामाजिक लोकतंत्र महज पूंजीवादी सत्ताओं को बदलकर उनके स्व-अनुशासन को जनता द्वारा अपनाना नहीं है।
16: युध्द सत्ता के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक, हर चेहरे को बेनकाब कर  देते है।
17: सत्ता पर जनता का नियंत्रण बेहद जरूरी है, अन्यथा सत्ता परिवर्तन महज कुछ अधिकारियों और नए नेतृत्व के बीच ताकत का हस्तांतरण बनकर रह जाता है।

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