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सोमवार, 8 जून 2015

चीजों को ऐसे देखें जैसे पहली बार देखे रहे हैं, जीवन से उबेंगे नहीं

अमृत साधना ओशो मेडिटेशन रिर्जाट, पुणे
रोज-रोज वही जिंदगी जीने से लोग उब जाते हैं इसलिए जिंदगी में कुछ नयापन चाहते हैं, उसके लिए देश विदेश की यात्रा करते हैं, नए संबंध बनाते हैं, लेकिन एक बात भूल जाते हैं कि उनका मन  तो पुराना ही है। जिन आंखों से दुनिया देखते हैं वे तो बासी ही हैं। शरीर को तो रोज धोते हैं, साफ  सुथरा रखते हैं, लेकिन मन न जाने कब धोया था, या कभी नहीं धोया। वर्षो की स्मृतियां पड़ी है भीतर। कितने घाव दबे हैं, कितनी इच्छाएं लहरा रहीं हैं। फिर जीवन का अनुभव उसी पुराने मन से लेते हैं। जीवन रोज नया होता जाता है जैसे सुरज रोज नया होता है, वृक्ष रोज नए होते हैं। पक्षी रोज वही राग आलापते हैं, लेकिन कितना नया ताजा लगता है।

इसका उपाय हैः ‘एक छोटा-सा ध्यान करेः सुबह उठे हैं, आंखें नहीं खोली हैं अभी, पक्षियों ने गीत गाए हैं, रास्ते पर धीमे-धीमे लोग चलने लगे हैं, सुनिए जैसे पहली बार सुन रहे हैं। रात भर के बाद मन ताजा है। थोड़ा सुनो, थोड़ा पड़े रहो आंख बंद किए ही। कानों केा इस रहस्य का अनुभव करने दो। आंख खोलो, अपने ही घर को ऐसे देखो जैसे कि अजनबी हो। वाकई अजनबी आंखों से देखें तो हर चीज रहस्य मालूम होती है। चीजों को नए सिरे से देखना शुरू करो, बासी मत होने दो। उधार आंखांे से मत देखों ताजी आखों से देखो। रोज झाड़ते जाओ धूल को, दर्पण को धूल से मत भरने दो। और तुम्हारे जीवन में रहस्य का आविर्भाव होने लगेगा। सब तरफ तुम पाओगे रहस्य। सब तरफ तुम पाओगे उसी की धुन बज रही है। अपने ही बच्चे को ऐसा ऐसा देखो, जैसे अतिथि है। अपनी पत्नी को ऐसे देखो, जैसे आज ही विवाह कर लाए हो। अपने पति को ऐसे देखो जैसे पहली बार देख रही हो। ‘अगर सचमुच लोग इस तरह जीने लगें तो यह एक मजेदार खेल होगा। रोजमर्रा की जिंदगी रंगीन हो जाएगी। बच्चे कैसे अकारण चहकने लगेंगे। हर चीज को, हर आदमी को ऐसे देखें जैसे चांद को देख रहे हैं। चांद को देखते हुए हम कितना रिलैक्स, कितना शीतल महसूस करते हैं। वही शीतलता पूरे दिन के उपर फैला दें। बाहर कितना ही कोलाहल क्यों न हो, भीतर चांदनी होगी।  

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