अमृत साधना ओशो मेडिटेशन रिर्जाट, पुणे
रोज-रोज वही जिंदगी जीने से लोग उब जाते हैं इसलिए जिंदगी में कुछ नयापन चाहते हैं, उसके लिए देश विदेश की यात्रा करते हैं, नए संबंध बनाते हैं, लेकिन एक बात भूल जाते हैं कि उनका मन तो पुराना ही है। जिन आंखों से दुनिया देखते हैं वे तो बासी ही हैं। शरीर को तो रोज धोते हैं, साफ सुथरा रखते हैं, लेकिन मन न जाने कब धोया था, या कभी नहीं धोया। वर्षो की स्मृतियां पड़ी है भीतर। कितने घाव दबे हैं, कितनी इच्छाएं लहरा रहीं हैं। फिर जीवन का अनुभव उसी पुराने मन से लेते हैं। जीवन रोज नया होता जाता है जैसे सुरज रोज नया होता है, वृक्ष रोज नए होते हैं। पक्षी रोज वही राग आलापते हैं, लेकिन कितना नया ताजा लगता है।