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शनिवार, 30 मई 2015

जीवन का स्वभाव है - मरण

अमृत साधना: ओशो मेडिटेशन रिजाॅर्ट, पुणे।
गौतम बुद्ध के संबध में यह ख्याल है कि उनके धर्म में स्त्रियों का स्थान नहीं है। चूंकि उनका धर्म कठोर तपस्या पर आधारित है, सिर्फ भिक्षुओं को ही उसमें दीक्षा दी गई। मोटे तौर पर यह सच भी हो  लेकिन आश्चर्य की बात है, आम्रपाली जो कि एक वेश्या थी उसने बुद्ध से दीक्षा ली। उसे भिक्षुणी संध की मुखिया बनाया गया था। 
ओशो एक और स्त्री की कहानी बताते हैं। उसका नाम था किसा गौतमी। उसे बुद्ध ने जिस प्रकाश ज्ञान दिया वह घटना भी हृदयस्पर्शी है। किसा गौतमी का बेटा अचानक मर गया। एक ही बेटा था, पति पहले ही मर चुका था। किसा गौतमी जैसी हो गई। गांव भर में अपने बेटे की लाश को लेकर घूमती थी कि कोई मेरे बेटे को जिंदा कर दो। फिर किसी ने सलाह दी कि गौतम बुद्ध का गांव में आगमन हुआ है, तू उन्हीं के पास जा। शायद उनके आशीष से कुछ हो जाए। किसा गौतमी ने बुद्धं के चरणों में ले जाकर अपने बेटे की लाश रख दी और कहाः मेरे बेटे को जिंदा कर दीजिए। आपके आशीर्वाद से क्या न हो सकेगा ? बुद्ध ने कहाः जरूर कर दूंगा, लेकिन पहले तुम्हे एक शर्त पूरी करनी पड़ेगी। शर्त यह है कि तू गांव जा और किसी के घर से  मुट्ठी भर सरसों के दाने मांग ला। मगर घर ऐसा हो जिसमें मौत कभी न हुई हो।

मोह में, आशा में गौतमी को खयाल न आया कि बुद्ध की शर्त ऐसी है कि पूरी हो न सकेगी। द्वार -द्वार जाकर उसने झोली फैलाई और कहाः मुझे थोड़े से सरसों के दाने दे दो, शर्त एक ही है कि तुम्हारे घर में कोई मृत्यु न हुई हो। सांझ होते-होते उसे ख्याल आया कि बुद्ध ने यह शर्त क्यों लगाई है-यही दिखाने के लिए कि मौत एक सत्य है।
यह सब जगह होती है। निरपवाद रूप से सभी की होती है। मरण, जीवन का स्वभाव है। शाम को जब  वह वापस लौटी उसने बुद्ध के चरणों में बैठकर कहाः मेरे बेटे को मत जिंदा करिए, मगर ऐसा कुछ करें कि मेरी मौत के पहले मैं जान लूं कि यह जीवन क्या है? जो थोड़े दिन बचे हों उन दिनों में अमृत से  संबध जोड़ लूं। बुद्ध ने कहाः मैंने इसलिए तुझे घर-घर भेजा था ताकि तेरी भ्रांति टूट जाए। ‘ उसके बाद किसा गौतमी को बुद्ध ने दीक्षित किया और वह ध्यान को कठिन राह पर चल पड़ी।

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