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बुधवार, 3 जून 2015

मुफ्त में नहीं मिलती नींद

अमृत साधना: ओशो मेडिटेशन रिजाॅर्ट , पुणे।
हम जो भी चीज लाते हैं उसके लिए हम कोई न कोई कीमत चुकाते हैं। लेकिन नींद के बारे में हम  कभी नहीं सोचते कि क्या हमने इसकी कीमत चुकाई हेै या कि हम इसे मुफ्त में चाहते हैं? नींद की कीमत क्या है? श्रम। एक समय था जब गहरी नींद की कीमत लोग दिन भर श्रम करके चुकाते थे। पर अब नींद समस्या बन गई है।
नींद दो तलों पर होती है शरीर की और मन की। आधुनिक आदमी दोनों तलों पर कीमतें नहीं चुकाता। शरीरिक नींद के लिए दिन भर शरीर को इतना थकना होता है कि रात बिस्तर पर गिरते ही नींद आ जाए इसे कबीर बड़ी खूबसूरती से कहते है, ‘जिन आंखों में नींद घनेरी तकिया और बिछौना क्या रे!‘ बीच बजार में सड़क के किनारे मैली चादर ओढ़कर गहरी नींद सोए किसी मजदूर को देखा है? उसे ट्रैफिक का शोर विचलित नहीं करता। लेकिन मुलायम गद्दों पर लोग करवटें बदलते रहते हैं। 

गहरी नींद के दो उपाय है: पहला शरीर के साथ मित्रता करें। शरीर मन से कई ज्यादा बु़द्धिमान है, उसकी अपनी प्रज्ञा है उससे पूछें, उसे कितना श्रम चाहिए। शरीर की मांसपेशियां, उसके संस्थान सुचारू रूप से चलें इसके लिए तेज गतिविधि जरूरी है। शरीर के अवयव स्वस्थ हों तो ही शरीर नींद ले सकता है।
दूसरी बात, आज कल मन की स्थिति ऐसी नहीं होती कि सोते समय वह शांत हो। मन एक नाजुक मशीन है जो लगातार चलती है। शरीर जब विश्राम करता हैै। तब मन को भी अपना कामकाज पूरा करने का वक्त होना चाहिए। अच्छी नींद के लिए दिन भर सक्रिय और मन निष्क्रिय होना चाहिए। लेकिन हमारा शरीर निष्क्रिय और मन सक्रिय होता है। इसलिए नींद नहीं आती। सोने से पहले ध्यान करें, दिन की घटनाओं को मन से देखें, जो व्यर्थ है उसे फेंक दें, जो सार्थक है उसे संजो लें। तब शांतिपूर्वक सो पाएंगे।

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